गोरखपुर अपनों से ठुकराए गए वृद्धजन को वृद्धाश्रम में ठिकाना तो मिल गया, लेकिन उनको वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल पा रही है। ऐसा तब है जब वृद्धावस्था पेंशन योजना भी उसी विभाग की ओर से संचालित हाेती है, जिस पर वृद्धाश्रम के संचालन की जिम्मेदारी है। वृद्धाश्रम में रहने वाले 113 में पेंशन से वंचित रहने वाले वृद्धजन की संख्या 45 है। वर्षों से रहने की वजह से इन लोगों का पता भी वृद्धाश्रम ही है।
बड़गो झरवा में संचालित हो रहे वृद्धाश्रम में अपनों से ठुकराए गए 113 वृद्धजन रहते हैं। यहां उनके लिए नाश्ता, भोजन के साथ ही रहने का इंतजाम किया गया है। समाज कल्याण विभाग की ओर से 68 लोगाें को तो पेंशन दी जाती है, लेकिन वर्षों से रह रहे 45 लोगों को पेंशन नहीं मिलती है।
ऐसे वृद्धजन के पास वृद्धावस्था पेंशन के लिए आनलाइन आवेदन करते समय लगने वाले जरूरी कागजात ही नहीं हैं। 13 लोगों के पास तो आधार कार्ड और कई लोगों के पास मोबाइल फोन ही नहीं हैं।
सवाल यह है कि इन वृद्धजन के आय प्रमाण पत्र व आधार कार्ड बनवाने का कार्य कौन करे? इन सबमें पड़ने की बजाय जिम्मेदारों ने मुंह मोड़ लेना ही मुनासिब समझ लिया है। समाज कल्याण विभाग की ओर से इनको पेंशन दिलाने का प्रयास ही नहीं किया गया है। ऐसे वृद्धजन की रुपये संबंधी जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं। मन को मनाते हुए वृद्धजन इसे नियति मान लिए हैं।
क्या कहते हैं वृद्धजन
जिनसे बुढ़ापे में सहारे की उम्मीद थी, उन्होंने तो साथ छोड़ दिया। यहां रहने और खाने में कोई दिक्कत नहीं है। पेंशन मिलती तो पास में कुछ रुपये भी रहते। – मनोज कुमार
– इससे खराब क्या हो सकता है कि अपनों का साथ छोड़कर वृद्धाश्रम में रहना पड़ता है। वैसे यहां कोई दिक्कत तो नहीं होती है। वृद्धावस्था पेंशन मिलती तो अच्छा रहता। – शीला देवी
– वृद्धाश्रम में रहना मजबूरी है। रुपये की जरूरत होती है तो खलता है। वृद्धावस्था पेंशन के लिए जरूरी कागजात नहीं है। विभाग के लोग मदद करते तो पेंशन मिल सकती थी। – मनोज श्रीवास्तव
– अपनी बात किससे कहने जाएं। यहां खाना-पीना मिल जाता है। सोने के लिए जगह है। पेंशन मिलती तो अन्य वृद्धजनों की तरह मैं भी कुछ बाहर से मंगाकर खा-पी सकती। – सरवर