नई दिल्ली आर्थिक विकास हासिल करना और अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करना किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में विकसित भारत की यात्रा में पर्यावरण की भूमिका काफी अहम हो जाती है। मौजूदा समय में ऋतु परिवर्तन, बेमौसम बारिश, बाढ़, सूखा, बढ़ता प्रदूषण आदि हमारे जीवन को आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक और स्वास्थ्य में भी प्रभावित कर रहे हैं। हालांकि इन समस्याओं को सरकार ने भांपा है। भारत की जलवायु परिवर्तन पहल पहले से ही प्रगति कर रही है। जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2023 में भारत ने 8वां स्थान हासिल किया, जबकि केवल चार दावेदार – डेनमार्क, स्वीडन, चिली और मोरक्को उससे ऊपर हैं, और सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले चीन (51), अमेरिका (52) और ईरान (63 सबसे कम) हैं। दिक्कत यह है कि सूचकांक ने इसके लिए योग्य दावेदारों की कमी का हवाला देते हुए शीर्ष तीन स्थानों को खाली रखा है। सीसीपीआई 2022 में भारत 10वें स्थान पर था। इस तरह भारत ने बेहतर भविष्य के लिए पहले ही दिशा तय कर दी है। हम तेजी से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। अब हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता, तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता, तीसरा सबसे बड़ा एलपीजी का उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा एलएनजी आयातक, चौथा सबसे बड़ा रिफाइनर और चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोप-26, ग्लासगो में पंचामृत की घोषणा कर चुके हैं यानी, पांच चीजें जो भारत की तरफ से पृथ्वी के लिए प्रतिबद्धता है। हमारा कार्बन उत्सर्जन कम होना है, गैर-जीवाश्म ईंधन की तरफ हमें 40 से 50 फीसदी तक बढ़ना है, इसमें सौर, जल से लेकर वायु ऊर्जा तक होगी यानी नवीकरणीय ऊर्जा होगी। हरित कवच को बढ़ाना है। भारत ने पहले ही एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया है। डी-कार्बनाइजेशन की प्रक्रिया में सतत जीवनशैली अपनाना और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। पीएम ने इसके लिए एक लाइफ मिशन भी लांच किया है, जिसमें ग्रीन क्रेडिट की बात है।
भारत 2047 तक ब्लू इकोनॉमी के बढ़ते योगदान के साथ मजबूत आर्थिक विकास की उम्मीद कर सकता है, जिससे प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद और मानव विकास सूचकांक विकसित दुनिया के बराबर हो जाएगा।
क्लाइमेट चेंज की कार्यकारी निदेशक दिव्या शर्मा कहती हैं कि विकसित भारत 2047 हर भारतीय के लिए विशेष यात्रा है। विश्व इसे विकास की यात्रा समझेगा पर भारत के लिए ये अपने स्वर्णिम इतिहास को पुनर्जीवित करने की यात्रा होगी। हम हमेशा से ही प्रकृति के साथ रहने वाली सभ्यता रहे हैं, प्रकृति का सम्मान, उसका संरक्षण हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग रहा है। आश्चर्य नहीं कि आज भी भारत के प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के आंकड़े अन्य विकसित देशों से कही बेहतर हैं। विकसित भारत की नीतियों में हमारी इसी शक्ति को अग्रिम रखना होगा। विश्व के देश जल्दी से जल्दी नेट जीरो प्राप्त करने को बढ़ावा दे रहे हैं, भारत ने अपने सामने 2070 तक नेट जीरो होने का लक्ष्य रखा है। विकसित भारत की नीतियों में ये लक्ष्य सर्वोपरि होना चाहिए। ये विकास बदलते समय के लिए भारत को तैयार तो करे ही, पर पर्यावरण , प्रकृति और संसाधन की शोषण से परे , उनके संरक्षण पर निर्भर हो।
टेरी की डायरेक्टर जनरल डा. विभा धवन का कहना है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि पर्यावरणीय चिंताओं और विकास की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बदलाव वाली नीतियों के साथ सही तरीके से चला जा सकता है। जैसा कि भारत पर्यावरण और पारिस्थितिक रूप से सुदृढ़ तरीके से आगे विकास करना चाहता है, हमें भूमि, जल और वायु की गुणवत्ता में आई गिरावट की जटिलताओं पर ध्यान देना चाहिए और टिकाऊ विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विकसित भारत के लिए कई विचारों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जैसे स्वच्छ ऊर्जा, लचीले बुनियादी ढांचे और समुदायों को बढ़ाना और स्वच्छ हवा और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर (30 लाख करोड़ डॉलर) की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की आकांक्षाओं के बारे में बात करते हुए डब्ल्यूआरआई की कार्यकारी निदेशक उल्का केलकर ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश एनर्जी के क्षेत्र में गरीब रहकर अमीर नहीं बना है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कुछ बड़ी समस्याएं हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने का भारत का उद्देश्य केवल कार्बन लैंस के जरिये नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, ‘जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का जोखिम शुरू होता है, पॉलिसी को भी उसी के मुताबिक अनुकूल और डिसेंट्रलाइज्ड बनाना होगा। यहां तक कि न्यू एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर या ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर भी जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में होंगे।’
सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की निदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि ‘जैसे-जैसे जीवाश्म ईंधन कम हो जाएगा, कर राजस्व भी कम हो जाएगा। जब तक हम ग्रीन एनर्जी से राजस्व उत्पन्न करने के नए तरीके नहीं खोजेंगे, 2047 तक 1.5 ट्रिलियन डॉलर (1.5 लाख करोड़ डॉलर) का नुकसान हो जाएगा’।
सरकारी योजनाओं के लक्ष्यों का निर्धारण आवश्यक
नारायण ने कहा कि किसी भी सरकारी योजना का अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होता है कि यह हर बार लोगों तक पहुंचे। अब जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी इसमें शामिल हो गया है, जहां हर दिन देश का कोई न कोई हिस्सा कम से कम एक चरम मौसम की घटना से प्रभावित हो रहा है। इसका विकास कार्यक्रमों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है – चरम मौसम की घटनाओं के कारण सूखा, बाढ़ और आजीविका का नुकसान बढ़ता है, जिससे सरकार के संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।