नई दिल्ली देश में बाल विवाह अधिनियम में सजा की दर काफी चिंताजनक है। भारत बाल संरक्षण (आइसीपी) अनुसंधान टीम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में बाल विवाह के मामले में सजा की दर मात्र 11 प्रतिशत है। इसके अनुसार पिछले पांच वर्षों में बाल विवाह के जितने मामले पंजीकृत किए गए हैं वह देश में एक दिन में होने वाले बालिका बाल विवाह की संख्या से भी कम है। इस रिपोर्ट को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने जारी किया है।
मामलों के निपटारे की दर धीमी
रिपोर्ट के अनुसार 2022 में बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत अदालतों में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कुल 3,563 बाल विवाह मामलों में से केवल 181 मामलों में सुनवाई पूरी हुई थी। यानी 3,365 मामले आज भी लंबित हैं। अनुमान है कि 2022 तक के लंबित मामलों को निपटाने में 19 साल लग सकते हैं। 2022 में प्रति जिला बाल विवाह का औसतन केवल एक मामला अभियोजन के लिए पंजीकृत किया गया।
असम का प्रदर्शन बेहतर
बाल विवाह को नियंत्रित करने के मामले असम का प्रदर्शन काफी बेहतर है। राज्य में 2021-22 और 2023-24 के बीच बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है। अध्ययन में शामिल असम के गांवों में बाल विवाह की घटनाएं 2021-22 में 3,225 मामलों से घटकर 2023-24 में 627 मामले हो गई हैं।
सख्त कानून की जरूरत
रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल असम के गांवों के 98 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि सख्त कानून की वजह से ही उनके समुदायों के भीतर बाल विवाह में कमी आई है। असम की सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से बाल विवाह के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया है। असम मंत्रिमंडल ने कुछ महीने पहले यह फैसला किया था कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों पर पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा।