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Monday, July 7, 2025
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    यूपी की 10 सीटों पर उपचुनाव की नैया कैसे लगेगी पार, सपा और राजग के हिस्से की हैं पांच-पांच सीटें

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    नई दिल्ली लोकसभा चुनाव में आशातीत परिणाम नहीं मिलने से चिंतन में डूबे भाजपा नीत राजग खेमे की चिंता को सात राज्यों की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणामों ने और बढ़ा दिया है। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। अभी इनमें से पांच सीटें राजग तो पांच सपा की हैं। अब भाजपा के सामने यहां बेहतर प्रदर्शन कर संगठन को लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान की हताशा से उबारने की बड़ी चुनौती है तो सीटों के समीकरण उतने ही जटिल भी हैं।

    उत्तर प्रदेश की फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां, मीरापुर, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी के विधायक इस बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए। यह नौ सीटें इस तरह रिक्त हुईं और दसवीं सीट सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी की आपराधिक मुकदमे में सदस्यता रद्द होने के कारण खाली हुई है। इन सीटों पर उपचुनाव की अभी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन इनके लिए तैयारी मुख्य विपक्षी सपा के साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा ने भी शुरू कर दी है।

    सपा ने लोकसभा चुनाव में तो आशातीत प्रदर्शन किया, लेकिन अब उपचुनाव में प्रदर्शन दोहराकर यह साबित करने की चुनौती है कि लोकसभा में जो नतीजे आए उसका ठोस आधार भी है। जबकि भाजपा के पास लोकसभा में बनी धारणा को तोड़कर इन उपचुनावों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को ऊर्जावान करने का मौका है। हालांकि, इन सीटों के समीकरण भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता अधिक बढ़ाते हैं।

    सपा का अभेद्य दुर्ग मानी जाती मैनपुरी की करहल सीट

    दरअसल, इनमें सपा के खेमे की जो पांच सीटें खाली हुई हैं, उन पर उसका पलड़ा काफी भारी दिखता है। मैनपुरी की करहल सीट से सपा मुखिया अखिलेश यादव विधायक थे। यह सीट सपा का अभेद्य दुर्ग मानी जाती है। मुरादाबाद की कुंदरकी सीट से जियाउर्रहमान बर्क विधायक थे। अब वह सांसद हैं, लेकिन यह मुस्लिम बहुल सीट सपा के कब्जे से छीनना आसान नहीं दिखता।

    अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट से कद्दावर नेता व दो बार से जीत रहे लालजी वर्मा अब सपा के टिकट से लोकसभा चुनाव जीते हैं। यहां उनके प्रभाव की काट भाजपा का काफी पसीना बहाना पड़ेगा। इसी तरह फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सभी की नजरें होंगी।

    अयोध्‍या में भाजपा को द‍िखाना पड़ेगा बल

    अयोध्या की भूमि पर भाजपा को परास्त करने वाले अवधेश प्रसाद की इस सीट पर भाजपा को अपना बल दिखाना पड़ेगा। वहीं, कानपुर की सीसामऊ सीट की बात करें तो तीन बार से सपा के इरफान सोलंकी यहां विधायक थे।

    2017 के मुकाबले 2022 में सपा की जीत का अंतर बढ़ भी गया था। यहां अतिरिक्त सीटें पाने की भाजपा की संभावनाएं फिलहाल सीमित दिखती हैं, लेकिन अपने खेमे की पांच सीटें बचाने की चुनौती जरूर उसके सामने है। इनमें से प्रयागराज की फूलपुर, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीट पर भाजपा के लिए लड़ाई थोड़ी आसान होगी। लेकिन मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट इतनी आसान नहीं।

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