प्रयागराज इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पहली बार अंग्रेजी, हिंदी व संस्कृत तीन भाषाओं में एक साथ फैसला सुनाया है। यह आदेश न्यायमूर्ति शिवशंकर प्रसाद ने कंचन रावत की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि परिवार अदालत ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है तो उस पर अमल कराने के लिए धारा 482 की अर्जी पोषणीय नहीं है।
याची को धारा 128 में आदेश का अनुपालन कराने का अधिकार है। वह हाईकोर्ट में आने के बजाय परिवार अदालत में ही धारा 128की अर्जी दाखिल कर सकती है। याची की शादी एक दिसंबर 2009 को विपक्षी बैजलाल रावत के साथ हुई।
शादी में परिवार ने सात-आठ लाख रुपये खर्च किए। किंतु दहेज को लेकर याची को ससुराल में प्रताड़ित किया जाता रहा। एक दिन मजबूर होकर उसे घर छोड़कर मायके आना पड़ा। जहां उसे 26 नवंबर 11 को एक बच्चा गौरव पैदा हुआ। उसने पति से गुजारा भत्ता मांगा। नहीं देने पर परिवार अदालत गाजीपुर में केस दर्ज किया।
परिवार अदालत ने धारा 125 में अंतरिम गुजारा भत्ता चार हजार रुपये प्रतिमाह देने का पति को आदेश दिया, जिसका भुगतान किया गया। किंतु बकाया 80 हजार रुपये का भुगतान नहीं किया गया।
इस पर अदालत ने दस हजार रुपये प्रतिमाह बकाया जमा करने का आदेश दिया। जिसका पालन न करने पर भुगतान करने का आदेश जारी करने की मांग में हाईकोर्ट में धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी।
विपक्षी द्वारा याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की गई। कहा याची को धारा 128 में राहत पाने का अधिकार है। इस कारण याचिका हाई कोर्ट से खारिज कर दी गई।