अयोध्या जगत का पालन करने वाले भगवान स्वयं भी बीमार होते हैं और भक्त उनका उपचार भी करते हैं। विश्वास न हो, तो जगन्नाथ मंदिर आइए। यह मंदिर रामजन्मभूमि के पुराने दर्शन मार्ग पर स्थित है। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ कृष्ण पक्ष के उत्तरार्द्ध से यहां भगवान जगन्नाथ से जुड़ी आस्था फलक पर होती है। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ सुभद्रा और बलभद्र का विग्रह स्थापित है।
भगवान जगन्नाथ से जुड़ी कथा के अनुसार वह ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन था, जब चंदन सरोवर में स्नान करते समय वह बीमार पड़ जाते हैं। इस प्रसंग के हिसाब से प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दूसरे दिन यानी आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा से भगवान जगन्नाथ के मूल स्थान पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान का पट बंद हो जाता है, किंतु रामनगरी के जगन्नाथ मंदिर में इस परंपरा का पालन आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी से शुरू होता है।
पट बंद कर पुजारी पथ्य के रूप में भगवान को सुबह-शाम बाल भोग में काढ़ा तथा राजभोग में खिचड़ी प्रस्तुत करते हैं। भगवान को स्वस्थ रखने की ही कामना से गर्भगृह के सम्मुख वैदिक आचार्यों द्वारा महा मृत्युंजय मंत्र का जप एवं रुद्राभिषेक भी किया जाता है। यह सिलसिला प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी आषाढ़ कृष्ण एकादशी से चतुर्दशी तक चलेगा। मान्यता के अनुसार भगवान आषाढ़ अमावस्या तक बीमार रहते हैं।
भगवान जगन्नाथ प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को स्वस्थ होंगे। उन्हें इस उपलक्ष्य में स्नान कराया जाएगा तथा नई पोशाक धारण कराई जाएगी। अगले दिन यानी आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (सात जुलाई) वह रथ पर सवार हो भ्रमण के लिए निकलेंगे। रामनगरी की रथयात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा के अनुरूप भव्यता की संवाहक होती है।
द्रवीभूत ब्रह्म हैं भगवान जगन्नाथ
जगन्नाथ मंदिर के महंत राघवदास के अनुसार भगवान जगन्नाथ वस्तुत: भगवान कृष्ण के ही अत्यंत आह्लादकारी स्वरूप हैं। इसके मूल में वह कथा है, जब रुक्मिणी के आग्रह पर देवर्षि नारद ने भगवान कृष्ण के बाल रूप की कथा सुनाई।
संयोग से श्रीकृष्ण ने भी अपने बचपन की कथा सुनी और इससे वह इतने भावुक हुए कि उनका शरीर गलने लगा। यह देख कर नारद ने कथा बंद कर दी। राघवदास कहते हैं, यही द्रवीभूत ब्रह्म कालांतर में उड़ीसा के पुरी में भक्तों पर कृपा-करुणा के लिए प्रादुर्भूत हुए।
1664 ई. में हुई रामनगरी के जगन्नाथ मंदिर की स्थापना
रामनगरी में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना का श्रेय राधामोहनदास नाम के संत को दिया जाता हैै। वह भगवान जगन्नाथ के अनन्य उपासक थे और अपने साथ जगन्नाथ का विग्रह लेकर चलते थे। बात 1664 की है, वह आराध्य विग्रह के साथ रामनगरी आए थे और रामजन्मभूमि परिसर के बाहर जगन्नाथ का विग्रह रख कर दर्शन करने जा पहुंचे।
लौटने पर उन्होंने जगन्नाथ के विग्रह को वापस ले जाने की पूरी चेष्टा की, पर वह अपने स्थान से हिले भी नहीं। इसके बाद जगन्नाथ का विग्रह और राधामोहनदास इसी स्थान के होकर रह गए। आज यह स्थल रामनगरी में प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के रूप में सुप्रसिद्ध है।