नई दिल्ली भारत की इकोनॉमी तेजी से तरक्की रही है। एक समृद्ध देश बनने के लिए इसे दिन-ब-दिन नई कुलांचे भरनी पड़ेंगी। एक तरफ मेक इन इंडिया ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नए पंख लगाए हैं तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय व्यापार बढ़ाने और मजबूत करने के लिए हो रही कवायदें रंग लाती दिख रही हैं। बात चाहे इकोनॉमिक कॉरिडोर की हो या समुद्री सीमा के दोनों तरफ तीन बंदरगाहों का कामकाज अपने हाथों में लेने की बात हो, भारतीय रणनीति हर जगह कामयाब होती दिख रही है। जी-20 के आयोजन में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करना हो, ग्लोबल साउथ की बात मुखरता से रखने की हो या फिर जी-7 जैसे मंचों पर भारत की उपस्थिति उसके वैश्विक कद को बढ़ाने के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों को प्रगाढ़ कर रही है।
पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवाइजर नीरज सिंह मन्हास कहते हैं कि दुनिया भर में कोविड महामारी और भू-राजनीतिक तनाव के कारण स्थितियां बदली हैं। इसकी वजह से अब निवेश पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। कंपनियां अधिक जोखिम नहीं ले रही हैं। चीन में बढ़ती श्रम लागत और आपूर्ति श्रृंखलाओं के “क्षेत्रीयकरण” और “स्थानीयकरण” पर जोर देने से यह कंपनियां भारत को निवेश के लिए अधिक मुफीद मान रही हैं।
भारत सरकार की पीएलआई योजना, जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है, ने निवेश गंतव्य के रूप में भारत की दावेदारी को अधिक मजबूत किया है। इंडो-पैसिफिक जियोपॉलिटिक्स मामलों के जानकार आकाश साहू कहते हैं कि भारत तेजी से विकास करने वाला देश है और इसे यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि आर्थिक विकास न्यायसंगत, समान रूप से वितरित और टिकाऊ हो। व्यापार समझौतों में सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है ताकि स्थानीय बाजारों पर प्रभाव कम से कम हो और आगामी प्रतिस्पर्धा स्थानीय उत्पादकों को अपने मानकों में सुधार करने की अनुमति दे। यदि इन व्यापार समझौतों पर अच्छी तरह से बातचीत की जाती है और स्थानीय उत्पादक अपने निर्यात उत्पाद को आसानी से आयात करने में सक्षम होते हैं, तो भारत विनिर्माण क्षेत्र में निवेश के लिए एक प्रमुख गंतव्य बन सकता है।
शारदा विश्वविद्यालय की ह्यूमैनिटीज और सोशल साइंसेज की डीन प्रोफेसर अनविति गुप्ता कहती हैं कि भारत को 2047 तक विकसित होने में अफ्रीका और ग्लोबल साउथ अहम भूमिका निभाएगा। वैश्विक व्यवधानों के बावजूद सप्लाई चेन के विविधीकरण ने भारत को प्रमुख निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित किया है। मजबूत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों और रणनीतिक आर्थिक नीतियों के कारण भारत 2047 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर है। विनिर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन की गई प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना इस परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।
समझौते रख रहे समृद्ध भारत की नींव
नीरज सिंह कहते हैं कि संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख वैश्विक भागीदारों के साथ व्यापार समझौतों पर बातचीत करने और उन्हें अंतिम रूप देने में भारत के सक्रिय दृष्टिकोण ने विदेशी निवेश के लिए इसके आकर्षण को बढ़ाया है। ये समझौते व्यापार बाधाएं कम करने, बाजार पहुंच बढ़ाने और एक स्थिर व्यावसायिक वातावरण प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) का उद्देश्य व्यापार और निवेश प्रवाह को सुविधाजनक बनाना है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ इसी तरह के समझौते टैरिफ कम करने और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने पर केंद्रित हैं। ये व्यापार समझौते न केवल भारतीय वस्तुओं के लिए नए बाजार खोलते हैं बल्कि विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इससे विदेशी कंपनियों के लिए एक बड़ा भारतीय बाज़ार भी खुल जाता है।
अनविति गुप्ता इस बात से इत्तेफाक रखती हुई कहती हैं कि संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार समझौते बनाने में भारत के सक्रिय दृष्टिकोण ने इसकी आर्थिक नींव को और मजबूत किया है। ये समझौते न केवल भारतीय वस्तुओं के लिए बाजार पहुंच बढ़ाते हैं बल्कि तकनीकी आदान-प्रदान और निवेश प्रवाह को भी बढ़ावा देते हैं।
बंदरगाह और कॉरिडोर विकसित भारत की पहचान बनेंगे
नीरज सिंह कहते हैं कि 2047 तक विभिन्न औद्योगिक और आर्थिक गलियारों के विकास के माध्यम से एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की स्थिति काफी मजबूत होने की उम्मीद है। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (डीएमआईसी), चेन्नई-बैंगलोर औद्योगिक गलियारा (सीबीआईसी) और अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा (एकेआईसी) जैसी परियोजनाएं अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा बनाने, विनिर्माण को बढ़ावा देने और निर्बाध सुविधा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। इन गलियारों का उद्देश्य प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों को जोड़ना, कनेक्टिविटी बढ़ाना और घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय निवेश आकर्षित करना है।
बढ़ी हुई कार्गो मात्रा को संभालने और परिचालन दक्षता में सुधार के लिए मुंद्रा, जेएनपीटी और विशाखापत्तनम जैसे बंदरगाहों का विस्तार और आधुनिकीकरण किया जा रहा है। इसके अलावा, “सागरमाला” परियोजना जैसी पहल का उद्देश्य बंदरगाह से जुड़े औद्योगीकरण, तटीय आर्थिक क्षेत्रों को विकसित करना और नीली अर्थव्यवस्था की गतिविधियों को बढ़ावा देना है।
अनविति गुप्ता बताती हैं कि विभिन्न आर्थिक गलियारों का निर्माण 2047 तक भारत की आर्थिक स्थिति को पुख्ता करेगा। इससे भारत का वैश्विक कद मजबूत होगा। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (डीएमआईसी) और चेन्नई-बैंगलोर औद्योगिक गलियारा (सीबीआईसी) जैसी परियोजनाएं विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रही हैं, औद्योगिक विकास को बढ़ावा दे रही हैं और सुविधा प्रदान कर रही हैं। इन गलियारों से महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित होने, रोजगार सृजन बढ़ने और निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।