नई दिल्ली कांवड़ मार्ग पर दुकानों के बाहर मालिक का असली नाम प्रदर्शित करने के मामले में विवाद के बाद मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कांवड़ियों का दिल खोलकर स्वागत करने की बात कही है। मंच ने दिल्ली में हुई बैठक में यह निर्णय लिया।
बैठक में इस बात पर विचार-विमर्श किया गया कि कांवड़ यात्रा को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी व सपा नेता अखिलेश यादव मुस्लिम समाज में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं। बैठक में शामिल कार्यकर्ताओं, अधिकारियों, शिक्षाविदों, चिकित्सकों, समाज सेवियों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस आदेश में आस्था जताई जिसमें दुकानों, ठेलों पर अपना असली नाम लिखने की बात कही गई है।
आस्था में डूबे लोगों को अपनी इच्छा अनुसार सामग्री मिले
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया है जिससे समाजिक सौहार्द न बिगड़े। आस्था में डूबे लोगों को अपनी इच्छा अनुसार सामग्री मिले। मंच ने कहा कि मुस्लिम विक्रेता भी हिंदू समाज की आस्था के मुताबिक शुद्धता का ध्यान रखते हुए सामग्री उपलब्ध कराएंगे। बैठक के बाद जारी बयान में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने स्पष्ट किया कि कांवडि़यों का दिल खोलकर स्वागत कर उसके कार्यकर्ता समाज में एकजुटता लाएंगे।
मंच ने विश्वास जताया है कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी कांवडि़यों के लिए शिविर लगाया जाएगा और उन्हें पुष्प वर्षा, शीतल जल की फुहारों, जल, फल, जूस, लंगर और शुद्धता भरे वातावरण से तरोताजा किया जाएगा।
उप्र सरकार के फैसले पर कानूनी राय ले रही जमीयत : मदनी
जमीयत उलमा-ए-हिंद (अरशद गुट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कांवड़ यात्रा मार्ग में दुकानों पर संचालक का नाम लिखने वाले उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को धर्म की आड़ में राजनीति का नया खेल बताया है।
उन्होंने कहा कि यह भेदभावपूर्ण फैसला है, इससे जहां देश विरोधी तत्वों को लाभ उठाने का अवसर मिलेगा, वहीं सांप्रदायिक सौहार्द को गंभीर क्षति पहुंचने की आशंका है। जमीयत अपनी कानूनी टीम के साथ बैठक कर इस आदेश के कानूनी पहलुओं पर चर्चा करेगी।
मुसलमान भी कांवडि़यों की सेवा करते हैं
अरशद मदनी ने शनिवार को बयान जारी कर कहा कि कांवड़ यात्रा के दौरान आमतौर पर मुसलमान भी कांवडि़यों की सेवा करते हैं। ऐसा पहली बार है जब इस तरह का आदेश जारी कर एक विशेष समुदाय को अलग-थलग करने के साथ ही नागरिकों के बीच भेदभाव और नफरत फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह भेदभाव फैलाने वाला अपना यह फैसला वापस ले।